Sunday, March 13, 2011

"मीडिया को अपने गिरेबान में झाकने की जरूरत" : प्रभु चावला





  • सन्डे इंडियन और टाइम्स फाउन्डेसन का राष्ट्रीय मीडिया सेमिनार
अंकुर शुक्ला, नई दिल्ली (12 मार्च )

जनवाणी से दूर होती मीडिया और उसकी जबावदेही पर सन्डे इंडियन और टाइम्स फाउन्डेसन ने संयुक्त रूप से शनिवार को कमानी सभागार में सेमिनार का आयोजन किया । इस मौके पर कई जाने - माने पत्रकार मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्रा ने की।

कार्यक्रम की शुरुआत में मैनजमेंट गुरु प्रो.अरिंदम चौधरी ने मीडिया पर कई सवाल उठाते हुए कहा कि आज की मीडिया कोई बड़ा बदलाव करने में यकीन नहीं रखती और इस देश में गरीबों के लिए न्याय की बात सोचना दिन में सपने देखने जैसा है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए देश की मीडिया और न्यायपालिका को एकजुट होकर अपनी भूमिका निभानी होगी.

वरिष्ट पत्रकार प्रभु चावला ने मीडिया को अपने गिरेबान में झाकने की सलाह देते हुए कहा कि आज की मीडिया अपने विचार देना तो जानती है लेकिन जनता से जुड़े सवालों को पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है. उनके सवाल उनके सिद्धांतों के
विपरीत और प्रायोजित होते हैं. ऐसी परिस्थितियों से जल्द ही निपटने की जरूरत है.

वरिष्ट पत्रकार राहुल देव ने मीडिया को बाज़ार का हिस्सा बताते हुए कहा कि हमारी लाइफ स्टाइल काफी हद तक मीडिया पर निर्भर है.यह हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है और परिस्थितियों में हो रहे परिवर्तन से इसके अस्तित्व को कोई खतरा नहीं है.

एक टीवी चैनल के प्रबंध सम्पादक आशुतोष ने खबरिया चैनलों की लापरवाह और तर्कहीन कार्यक्रमों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि हमें खुद से यह सवाल करना होगा कि क्या हम ईमानदार हैं? हमें दूसरों को बेईमान कहने का क्या अधिकार है?

लोकप्रिय पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में सरकारी नीतियों और समस्याओ का हवाला दिया और कई महत्वपूर्ण सवाल उठाते हुए कहा कि पूरा सिस्टम लाभ के लिए काम कर रहा है जिसमे मीडिया भी उसमे शामिल है. आज का मीडिया गूगल के कंटेंट पर ज्यादा निर्भर हो गया है.जिसके कारण मास और मीडिया में संवादहीनता जैसी स्थिति बन गई है. हमें लोगों तक पहुचकर उनकी समस्याओं को जानना चाहिए.

अमर उजाला के सलाहकार संपादक अजय उपाध्याय ने कहा कि" न्यूज़ चैनलों पर चल रहे शीला मुन्नी और जादू -टोने जैसे निम्नस्तरीय कार्यक्रमों को दिखाकर हम क्या साबित करना चाहते हैं"? क्या मीडिया की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वह शिक्षा परक कार्यक्रमों में भी अपनी भूमिका का अहसास कराए.लोकतंत्र के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया ने खुद ही अपने आप को चौथे महत्वपूर्ण स्तम्भ के रूप में घोषित कर दिया है वास्तव में आज भी तीन स्तम्भ ही महत्वपूर्ण हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ एक वाक्य बोलकर "हमें कोई रोक नहीं सकता" उन्होंने अमेरिका में इतिहास कायम कर दिया. क्योंकि वहां की जनता का भरोसा उन्होंने अपने संवाद से जीत लिया. हमें पहले जनता का भरोसा जीतना होगा और इसके लिए हमें उनके बीच जाकर उनकी आवाज़ बनना होगा.

दूरदर्शन के चीफ प्रोड्यूसर कुबेर दत्त ने जनवाणी के शुरू होने और कार्यक्रम से सम्बंधित अपने संघर्ष और चुनौतियों की विस्तार से चर्चा की. गौरतलब है कि कुबेर दत्त दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले लोकप्रिय कार्यक्रम 'जनवाणी' के प्रोड्यूसर भी रह चुके हैं. उनके अनुसार विभागीय लापरवाहियों का ठीकरा उनके सिर डालकर उन्हें साजिश के तहत निलंबित भी किया गया था.

स्तंभकार ज़फर आगा ने कहा कि मीडिया की आवाज़ दबाई नहीं जा सकती. परिस्थितियों के विपरीत होने पर उसने अपना रास्ता खुद ही तय किया है. उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि मौजूदा दौर में फेसबुक,ट्विटर और ब्लॉग के रूप में उभरती तमाम वैकल्पिक मीडिया इस बात के प्रमाण हैं.

बी ई ए के महासचिव और साधना न्यूज़ के चैनल हेड एन के सिंह ने दर्शकों से जिम्मेदार बनाने की अपील की और कहा की न्यूज़ चैनलों द्वारा दिखाए जा रहे बेतुके और आधारहीन कार्यक्रमों की आड़ में सरकार नियंत्रण समीति के गठन का प्रयास कर रही है.जिसका नियंत्रण कही न कही सरकार अपने पास रखना चाहती है.जो मीडिया की स्वतंत्रता के लिए हितकर नहीं होगा. ऐसे कार्यक्रमों को प्रसारित करने वाले न्यूज़ चैनलों से उन्होंने गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत पर बल दिया.

सेमिनार को वर्तिका नंदा , मुकेश कुमार , कुर्बान अली , संजय अहिरवाल आदि पत्रकारों ने भी संबोधित किया.
इस मौके पर टाइम्स फाउन्डेसन के निदेशक पूरण चंद पांडे भी मौजूद थे. वही जाने-माने पत्रकार ओंकारेश्वर पांडे ने बड़े ही रोचक अंदाज़ में सेमिनार का संचालन और उद्घोषणा की.




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