Friday, March 11, 2011

एहसास !!!! (जिंदगी और चुनौतियाँ)


प्रस्तुति: छत्रपति 'अन्कुर'(अंकुर शुक्ला)

क्यॊ हॊता है एहसास मुझॆ,

मै पल दॊ पल का राही हूँ,

जलती हुई इस दुनिया का,

मिटता हुआ बस एक स्याही हूँ,

कॊइ दर्द किसी की सुनता नही,

कॊइ अश्कॊ पर मर मिटता है,

यह वक़्त किसी का हॊता नही,

पल पल यॆ फिसलता रहता है,

हर राह यहा आसान मगर,

पर क्यॊ चलना मुश्किल हॊता,

सब कुछ पाकर क्यॊ हर कॊइ,

एकबार मॆ सबकुछ है खॊता,

यॆ खॊना ही तॊ जीवन है,

जीकर दिखलाऒ तॊ समझू,

पाकर हीरा तॊ सब हसतॆ,

खॊकर हस दॊ तॊ मै समझू,

सपना तॊ बस सपना हॊता,

सच कर दिखलाऒ तॊ समझू,

इन तूफानो कॆ सायॆ मॆ,

कश्ती कॊ चलाऒ तॊ समझू,

इन्सानॊ की इस दुनिया मॆ,

एक वक़्त था वॊ एक वक़्त है यॆ,

उस वक़्त कॊ कितनॊ नॆ है जीया,

इस वक़्त कॊ जी लॊ तब समझू,

रूत है यॆ सुहानी आज़ अगर,

पर बात समझ लॆ एक मगर,

खुशियॊ कॆ बाद ही ग़मआता,

यह बात समझलॊ तॊ समझू,

हर रिश्ता है भगवान यहा,

पर क्यॊ इन्सान अकेला है,

इन रिश्तॊ कॆ जज़्बातॊ कॊ,

एकबार समझलॊ तॊ समझू,

आतॆ है सब रॊतॆ रॊतॆ,

अरमानॊ कॆ इस आगन मॆ,

जातॆ जातॆ इस आगन मॆ,

औरॊ कॊ हंसालो तॊ समझू I


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