Wednesday, February 2, 2011

रैमन मैग्सेसे अवार्ड सरकार को लौटाया

अंकुरशुक्ला

"भारत में सबसे बडे दुख की बात ये है कि कल्याणकारी योजनाओं में फैले भ्रष्टाचार से भारत की राजनीति चलती है. जो दल सत्ता में है या फिर जो दल सत्ता में आ सकते है वो कभी भी नहीं चाहेंगे कि इस तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कार्रवाई हो" ऐसा कहना है जाने-माने समाज सेवी और रैमन मैग्सेसे अवार्ड विजेता संदीप पांडे का. सरकारी ढुलमुल रवैये और देश में लगातार बढ़ रहे भ्रष्टाचार से आहत संदीप ने भारत सरकार से साल २००९ मिले रैमन मैग्सेसे पुरस्कार लौटा दिया है. यह पुरस्कार उन्ह मनरेगा परियोजना के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए दिया गया था जिसमें प्रशस्ति और 44 हज़ार रुपए दिए जाते हैं. इससे पहले गरीब बच्चों के लिए उनके कार्यों को देखते हुए 2002 में रैमन मैग्सेसे अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.

उन्होंने यह कदम पंचायत स्तर से लेकर केन्द्रीय स्तर तक फैले भ्रष्टाचार और सरकारी कर्मचारियों की दबंगई के विरोध में उठाया है. उन्होंने विशेष तौर पर हरदोई ज़िले के ऐरा काके मउ का उल्लेख करते हुए कहा है कि गांव के ग्राम प्रधान के पति ने पंचायत के छह लाख 20 हज़ार रुपए ले लिए और जब इस बारे में लोगों ने शिकायत की तो पुलिस की मौजूदगी में लोगों को पीटा गया. इस मामले में दोषियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई और वो इससे बेहद दुःखी और निराश हैं.

पांडे का कहना था, ‘‘हमने इस मामले कि शिकायत खंड विकास अधिकारी से लेकर केन्द्र सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रालय तक की है लेकिन दो साल हो चुके है आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.बल्कि उल्टा हुआ, जिनके ख़िलाफ़ शिकायत है उन्हें राज्य औऱ केन्द्र सरकार बचाने की कोशिश हो रही है. इसी से क्षुब्ध होकर हम लोगों ने ये पुरस्कार ठुकराने का फैसला किया है.

गौरतलब है कि आम जनता के बीच सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों को लेकर गहरा असंतोष बना हुआ है. लगातार घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है. ऐसे में देश की जनता के मन में यह सवाल उठाना लाज़मी है की आखिर कौन सी ऐसी मज़बूरी है जिसने भ्रस्ताचारियों के खिलाफ सरकार को ठोस कदम उठाने से रोक रखा है. ?

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