Tuesday, February 1, 2011

डीटीसी बसों की होंगी अग्निपरीक्षा


अंकुर शुक्ला, नई दिल्ली

राजधानी की सडकों का बादशाह लौट आया है। डीटीसी यानी दिल्ली की आम जनता की सवाड़ी अब अपने रंगत में लौटने को बेताब है। डीटीसी ने यह दावा किया है कि वह लोगों की उम्मीद पर खड़ी उतरेगी। यात्रियों को परेशानी न हो इसके लिए तमाम तैयारियों को अमली जामा पहना दिया गया है। दिल्ली सरकार और डीटीसी ने यह भरोसा दिलाया है की एक फरवरी से डीटीसी की 90 फीसदी से अधिक बसें दिल्ली की सडकों पर उतारी जायेगी साथ ही जिन रूटों से ब्लू लाइन बसे हटाई गई है उन रूटों पर डीटीसी बसे मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभाएगी। अगले 15 दिनों तक अत्यधिक व्यस्त रूटों पर और पीक आवर के दौरान डीटीसी के अधिकारियों को मौके पर तैनात रहने का निर्देश दिया गया है ।

डीटीसी के मुताबिक़ 1 फरवरी की सुबह कुल 6200 बसों में से 5500 से अधिक बसें सडकों पर उतारी जायेगी वहीँ शाम को इन बसों की संख्या लगभग 5300 होंगी. रात्री में आखरी ट्रिप को डीटीसी जरूर लगाएगी। इस दौरान कुछ बसों के फेरे भी बढ़ाये जायेंगे। ड्राइवरों और कंडक्टरों की ड्यूटी का समय बढाकर अब 12 घंटे का कर दिया गया है । इन्हें अब 4 घंटे का ओवर टाइम दिया जाएगा । साथ ही इन्हें निर्देश दिया गया है की बसों को सभी बस स्टाप्स पर रोका जाये । ऐसा ने करने पर शख्त कार्रवाई की जायेगी। यह निर्णय परिवहन मंत्री अरविंदर सिंह लवली और डीटीसी अधिकारियों के साथ बैठक में लिया गया है।

गौरतलब है की दिल्ली परिवहन निगम दिल्ली सरकार के महत्वपूर्ण विभागों में से एक है आम जनता के लिए सड़क का सहारा। कुछ साल पहले तक यह सरकार की कमाऊ विभागों में शुमार थी मगर साल 1994 से घाटे का सिलसिला शरू हुआ वह आज-तक बदस्तूर जारी है । लगातार हो रहे घाटे से उबारने के लिए अब तक कई प्रयास किये जा चुके है मगर सभी कोशिशें नाकाफी साबित हो गई।

इस समय दिल्ली परिवहन निगम के पास लगभग 6200 बसों का बेडा है । जिनमे से अबतक बामुश्किल लगभग 4000 बसों को सुबह के वक़्त और शाम को लगभग 3000 बसों को सडकों पर दौडऩा संभव हो पता था। जिनमे से करीब 15000 निर्धारित ट्रिपों को किसी न किसी वज़ह से पूरा नहीं किया जाता था। ऐसे हालत के लिए एक बड़ी वजह ड्राइवरों और कंडक्टरों के आभाव को माना गया है। विभागीय घाटे को बढ़ाने में डीटीसी के ड्राइवरों और कंडक्टरों की भी विशेष भूमिका रही है। अक्सर यात्री यह शिकायत करते हैं कि डीटीसी की बसें स्टापों पर बिना रुके आगे बाद जाती है । यह सिलसिला अबतक जारी है । इसके आलावा ब्लू लाइन के साथ सांठ-गाँठ कर अक्सर मिस्ट्रिपिंग करना अपने रूटों पर देर से आने जैसे कई गंम्भीर आरोप भी डीटीसी पर लगते रहे है।

ज्ञात हो कि इस विभाग की दैनिक आमदनी करीब 40 करोड़ थी.जो ब्लू लाइन बसों के आने के बाद घटकर लगभग 3 करोड़ हो गई है । हर महीने डीटीसी को 80 करोड़ का घाटा सहना पड़ता है । विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार कर्मचारियों के वेतन में 60 करोड़ लोन अदायगी में 12 करोड़ एस्टेब्लिश्मेंट पर 10 करोड़, संचालन सम्बन्धी खर्च 80 करोड़ और दूसरे खर्चो में 10 करोड़ रुपयों का भुगतान करना पड़ता है । ऐसे में यह सवाल उठाना लाज़मी है की लगातार घाटे की मार झेल रही डीटीसी के इस दयनीय हालत के लिए कौन जिम्मेदार है? आखिर क्या वजह है कि साल 1992 तक लाभ में चल रही दिल्ली सरकार की यह महत्वपूर्ण इकाई अचानक घाटे में चली गई?
पूर्व परिवहन मंत्री जगदीश तैतालर के कार्यकाल में शरू हुई ब्लू लाइन बसों की भविष्य में ऐसी किरकिरी होगी शायद उन्होंने भी यह उम्मीद नहीं की होगी ।
जिस तरह दिल्ली की सडकों पर चल रही ब्लू लाइन बसों ने ताबरतोड़ दुर्घटनाओं को अंजाम दिया और किलर ब्लू लाइन के नाम से बदनाम हो गई.ऐसे में राजधानी की सड़क का इस दूसरे विकल्प को हटाये जाने से आम जनता राहत की सांस जरूर ले रही है । लेकिन दिल्ली परिवहन निगम इससे उपजे आभाव की भरपाई कर पाने में कितना सक्षम हो पाती है कुछ दिनों में खुद ही पता चल जाएगा ।

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