Sunday, January 30, 2011

निंदा वृति से प्रभावित व्यक्ति देश और दुनिया


प्रस्तुति: अंकुर शुक्ला

इंसान को दूसरे की निंदा और अपनी प्रशंसा बड़ी प्रिय लगती है. देखा जाए तो यह एक सामान्य मानवीय प्रविर्ति है . लेकिन आज के आधुनिक जमाने में एनालिसीस के साए में इंसान के अन्दर आलोचना और निंदा की आदत कब जन्म ले लेती है पता नहीं लगता। प्राय: लोग वैचारिक मतभेद के नाम पर स्वस्थ आलोचना करने के बजाये दूसरों की निंदा करते नहीं थकते हैं. कुछ लोग आलोचक कम और निंदक ज्यादा होते हैं. जिनका एकमात्र उद्देश्य व्यक्ति को नीचा दिखाना होता है. इस प्रवृति का इंसान अपनी आदतों से मजबूर होता है परिणामस्वरूप जहां भी इनकी उपस्थिति होती है वहां का वातावरण तनावपूर्ण बना रहता है. ऐसे लोग किसी के सगे और मित्र नहीं हो सकते.

देखा जाए तो आलोचना और निंदा में बहुत छोटा मगर महत्वपूर्ण फर्क होता है. निंदा का अर्थ है अपने अहंकार का दूसरे के अहंकार से टकराना। जबकि आलोचना का मकसद होता है कहीं न कहीं सत्य को ढूंढना. निंदा की आड़ में कही न कही शत्रुता छिपी होती है जबकि आलोचना के साथ मैत्रीपूर्ण भावना का भी होना संभव है. निंदा में मिटाने का भाव है, आलोचना में जगाने की इच्छा होती है.

निंदा करने की प्रवृति के क्या परिणाम हो सकते हैं और ऐसी प्रवृति का इंसानों को इससे क्या नुकसान हो सकते हैं पवित्र ग्रन्थ रामायण के एक वाकये से समझा जा सकता है. जिसमे मंथरा नामक निंदक प्रवृति की दासी के प्रभाव में आकर रानी कैकई को निंदा का नुकसान उठाना पड़ा था.रामजी के राजतिलक के पूर्व एक ही रात में कैकयी के सामने मंथरा ने जो वार्तालाप आरंभ किया था उसका आरंभ निंदा स्तुति से ही हुआ था। अपनी निंदा वृत्ति को उसने कैकयी में भी प्रवेश करा दिया था। कैकयी के जीवन में निंदा आते ही राम दूर चले गए। निंदा की आदत भगवान को हमसे दूर कर देती है।

आज हमारा देश और यह कहना शायद गलत न होगा कि सम्पूर्ण विश्व इसी निंदा प्रवृति से आहत है.जिसका दुष्प्रभाव धार्मिक कट्टरता, क्षेत्रवाद, नस्लवाद और आतंकवाद आदि के रूप में देखा जा सकता है .

यह कहना गलत नहीं होगा कि इस समय भारतीय राजनीति की जो स्थिति है वह कही न कही निंदा वृति से ही प्रभावित है.जनता की जरूरतों और परेशानियों पर विचार करने के बजाये सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दुसरे की निंदा ही तो कर रहें है.एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़, आरोप-प्रत्यारोपों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. लेकिन क्या इससे देश और जनता को लाभ मिल रहा है?

मुख्य मुद्दे से भटक कर सरकार और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोपों की बौछार करने में लगे है. कहने का अर्थ यह है कि निंदक प्रवृति से परिणाम प्राप्त नहीं हो सकता बल्कि असंतोष और शत्रुतापूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाती है.सहयोग की भावना ख़त्म हो जाती है और वातावरण तनावपूर्ण बन जाता है.


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