Thursday, February 10, 2011

अपनी भूमि पर लोकप्रियता के लिए संघर्षशील “भारतीय शास्त्रीय संगीत”(भाग-2)

लाकारों को हमारे समाज में प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि प्राप्त है.ज्यादातर कलाकार आर्थिक और राजनीतिक रूप से भी सबल हैं.अपने व्यक्तिगत या लाभ-पूर्ण मांगों केलिए वह भारत सरकार से निवेदन करते हैं,इन कलाकारों की प्रतिष्ठा,प्रसिद्धि और देश के लिए किये गए उनके योगदान को देखते हुए सरकार चाहकर भी नजरंदाज नही करती है,
तो क्या इस गंभीर सांस्कृतिक संकट के समाधान हेतु ऐसे प्रतिष्ठित कलाकार एकजुट होकर और एक मंच पर आकर आवाज़ उठाएंगे तो क्या? सरकार नींद से नही जागेगी?
rudravina
विदेशों में प्रतिष्ठा और कद्रदानो के नाम पर वहाँ की नागरिकता प्राप्त करने के बजाये अगर, हमारे प्रतिष्ठित एवं प्रसिद्द कला प्रतिनिधि इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाये तभी स्थिति में सुधार संभव हो पायेगा. इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सुचना-क्रांति के युग में क्या कोई ऐसा कलाकार नही है जो,आर्थिक रूप से इतना सबल हो और ऐसे कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए एक टी.वी.(उपग्रह) चैनल का आरम्भ करने की कोशिश करे!!अथवा अपना सहयोग दे सके!!
शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में जाने के नाम पर लोग अक्सर यह कहते हैं कि, “इनका कार्यक्रम बहुत लम्बी अवधि का होता है…..हमारे पास समय का बहुत आभाव होता है……हमें इस प्रकार का कार्यक्रम समझ में नही आता है……….ये कार्यक्रम संगीत से सम्बंधित एवं बुज़ुर्ग व्यक्तियों के लिए होता है……… मेरे एक मित्र ने कहा कि ‘ऐसे कार्यक्रम अरूचिकर होते हैं………मुझे पसंद नही आता………चूँकि इसे वृद्ध कलाकार प्रदर्शित करते हैं ,इसलिए ऐसे कार्यक्रम वृद्धों के लिए अच्छा होता है……वगैरह!!वगैरह!!
अरे!! भाई!! जबतक कार्यक्रम में बैठोगे नही,सुनोगे नही तो भला!! इसे सुनने कि रुचि खान उत्पन्न होगी? बिना देखे-सुने केवल दूसरों के मात्र कह्देने से किसी कला के प्रदर्शन पर नकारात्मक और एकतरफा अवधारणा बना लेना कहाँ कि बुद्धिमानी है?? जाकर कार्यक्रम कि प्रस्तुति देखने पर पता चलेगा कि, ऐसे कार्यक्रमों में युवा वर्ग कि उपस्थिति होती है या नही??

हो सकता है! कि आपके मित्र को जो पसंद नही आया वह आपको पसंद हो!

संगीत कला एक कठिन कला है जिसे सीखते हुए इंसान को अपनी उम्र का पता ही नहीं चलता कि वह कब वृद्ध हो गया?वैसे भारतीय शास्त्रीय संगीत में युवा वर्ग से कई प्रसिद्द युवा कलाकार भी हैं.किसी चीज़ को नजदीक से देखने या मह्शूश करने के बाद ही उस पर सकारात्मक या नकारात्मक टिप्पणी करना न्यायोचित रहता है!

हममे से कई लोगों को अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान नही होता फिर भी हम अंग्रेजी भाषा के गानों के धुनों पर थिरकने लगते है!भारतीय शास्त्रीय संगीत तो फिर भी अपने देश कि और अपने ही भाषा में है,जिसमे यकायक तूफ़ान आकर सबकुछ तहस-नहस नही करता बल्कि,धीरे -धीरे सुरों की लहरें आपको कर्णप्रियता और मधुरता के भवर में डुबो कर मनोरंजन की चरम-सीमा तक ले जाती है. विदेशों में या विदेशों से हमारे देश में आये हुए दर्शक जब बिना भाषा ज्ञान के केवल हमारे संगीत की धुन पर थिरक सकते हैं तो हम क्यों नही??

देखा जाए तो उठने से सोने तक हम विदेशियों की नक़ल करने में व्यस्त रहते हैं,तो इन कार्यक्रमों को देखने में भी इन्ही के नक़्शे-कदम पर चलने में भला हर्ज़ ही क्या है??

भारतीय शास्त्रीय संगीत को सुनने से होने वाले फायदों का लोहा विज्ञान और वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है. यहाँ तक कि,भारत और विदेशों में इसकी मदद से कई चिकित्सा-पद्धतियों को भी विकसित किया जा चुका है, जिनकी मदद से आज कई असाध्य रोगों का उपचार संभव हो गया है.

आप वैज्ञानिक युग में जीवन जी रहे हो तो कम से कम विज्ञान को तो मानो!!


इससे पहले कि अँधेरा हो जाए, सूरज बादल में छुप जाये,
चिड़ियों का चहकना रूक जाए, तेरा कोई अपना खो जाए,
तू ही संकट में फंस जाए, विलुप्त कला सब हो जाए,
संगीत के धुन में रम जाओ, आओ सुब मिल मन से गाओ!!

” अगर हम अपनी राष्ट्रिय संस्कृति,धरोहरों और कलाओं का सम्मान नही करेंगे तो हमारी आने वाली पीढियां इसके दर्शन-मात्र को तरस जायेगी और हम सबसे यह सवाल करेगी कि, ‘आप (यानि हम) इतने लापरवाह और गैरजिम्मेदार थे,जो अपने अनमोल सांस्कृतिक धरोहरों को हमारे लिये संभाल न सके??

जरा सोंचिये,क्या ज़बाब देंगे आप उनको और स्वयं को “……………………………???

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