Saturday, January 29, 2011

सुर ही ईश्वर है: डॉ आदेशरा



  • नेत्र हीनता नही है बाधक क्योंकि संगीत एक एहसास है
  • गरीब छात्रों को शिक्षित कर संतुष्टïी मिलती है



फलता उनकी ही कदम चूमती है जिनमें मंजिल पाने की ललक हो। ऐसे लोगों के इरादे चट्टानों से भी मजबूत होते हंै, जिन्हें उनकेे लक्ष्य से कोई डिगा नही सकता और जिन्हें विजय पाने की आदत हो जाती है। ऐसे लोग प्रत्येक कठिनाइयो को चुनौती मानते हंै और जिंदगी की राह में आत्मविश्वास के साथ उनके बढते कदम असफलता को बहुत पीछे छोड़ देते हंै। ऐसे लोग बन जाते हंै मिसाल समाज के लिए।


उत्तरी दिल्ली के अशोक विहार में रहने वाले सुप्रसिद्व सितार वादक और दिल्ली विश्वविघालय के रि़टायर्ड प्राघ्यापक डा० रवंींद्र आदेशरा उन चन्द लोगों में से एक हंै जिन्होंने कठिनाइयों को चुनौती मान कर उन पर विजय प्राप्त की है। नेत्रहीन होते हुए भी इन्होंने जिंदगी की वो इबारत लिखी है जो समाज के लिए एक बड़ा उदाहरण है और खास तौर से नेत्रहीन लोगों के लिए पे्ररणा का आघार भी ।

अंकुर शुक्ला ने डा० आदेशरा से लंबी बातचीत यहां पेश हंै उसके कुुछ संक्षिप्त अंश

  • आपने सितार वादन ही क्यों अपनाया ïसुना है आप गाते भी है?

* बचपन से ही सितार की आवाज पसंद है और तभी से सितार बजाने की ललक मन मे पैदा हो गई । सितार की आवाज में एक प्रकार की आत्मीयता है जो इसे सजीव बनाता है और यह मन को रोमांचित करने वाला वाद्य यंत्र है। सितार बजाने वाले महान संगीतज्ञो ंको सुनकर सितार बजाने की प्रेरणा मिली ।सितार वादन के साथ गायन में भी रूचि है, वैसे भी संगीत में गायन वादन और नृत्य इन तीनों कलाअंो में से गायन सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

  • सितार वादन और कंठ संगीत की विधिवत शिक्षा किन लोगों से प्राप्त की ?

* सितार में विश्वविघालय स्तर पर पी एच डी करने के साथ मुझे गायन और सितार वादन की प्रारंभिक शिक्षा पंडित चंद्रकंात जी, गन्धर्व संगीत महाविघालय के पंडित अनिलधर जी और पद्मविभूषण पंडित देबु चौधरी से प्राप्त करने का सौभाग्य मिला ।
किन चुनौतियों का सामना करना पडा़?

* नेत्रहीनता मेरे लिए एक बडी चुनौती थी नेत्रहीन होने की वजह से सभी अध्यापक यह मानते थे कि मैं सितार नही सीख पाउंगा लेकिन मुझमे इसे सीखने को लेकर ग$जब का आत्मविश्वास और ललक थी । बस मैने अपने आप पर भरोसा किया और सीखने में सफल रहा । इसके अलावा मै तबला और प्राचीन वाद्य यंत्र दिलरूबा इसरारज भी बजाता हूं।

  • आप बदलाव के इस दौर में शास्त्रीय संगीत को कहंा पाते हंै ?

* शास्त्रीय संगीत की अपनी एक खास महत्ता और दर्शक दिर्धा है । संपूर्ण विश्व में शास्त्रीय संगीतही ऐसी संगीत पद्वति है जिसका प्रदर्शन कल्पना पर आधारित होता है । लोगो की रूचि और खास कर युवाओं के पसंद का ख्याल रखा जाना चाहिए। अन्य संगीत पद्वतियों से इसकी तुलना नही की जा सकती ।

  • आपको ऐसा नही लगता कि संगीत के क्षेत्र में कलाकारों के लिए मंच तो उपलब्ध है लेकिन विद्यार्थियों के लिए निश्चित रोजग़ार की कमी है?
* हां यह बात काफी हद तक सही है । इस क्षेत्र में रोजगार की अनिश्चितता तो है मगर स्कूल कालेजों और विश्वविधालयों में अध्यापकों और प्राध्यापकों के रूप में रोजगार प्राप्त की जा सकती है । इसके अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन में भी कलाकरों की नियुक्ति होती है ।

  • बतौर अध्यापक आप अपने को आज कहंा पाते हैं ?

* बतौर संगीत अध्यापक मैेने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षण कार्य को समर्पित कर दिया है विभिन्न विधियों के द्वाारा विद्याथर्र््िायों कों संगीत की शिक्षा देना पसंद है विशेष कर गरीब छात्रों को शिक्षित करना चाहता हँू।
ऐसे लोगो को शिक्षित कर बहुत संतुष्टïी मिलती है इसलिए सेवा निविृत होकर भी मैने यह कार्य जारी रखा है।

  • संगीत के विद्याथर््िायों के लिए आप क्या संदेश देना चाहेगें?

* विद्यार्थी मेहनत और लगन से अपना लक्ष्य हासिल कर्रंे और अपने गुरूअंो के प्रति आस्था रख्ंो। संगीत के सुर एक छोटे बालक की तरह है जिससें जितना प्यार करोगे सुर तुम्हारे उतना ही करीब होगा।
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एक नजर
  • १९७२ से २००३ दिल्ली विश्वविद्यालय मे बतौर प्राध्यापक
  • वतमान मे अतिथी संकाय केेरूप मे कायॅरत
  • २५ सालो से आकाशवाणी कलाकार
उपलब्धियॉ
  • बेस् त मियुजिसियन अवार्ड
  • म्युजिकएन्ड लायनेन्त अवार्ड
  • नेश्नल कल्चरल सकॉलरशिप
मंच प्रदर्शन
  • मंगलवासरीय संगीत समारोह दिल्ली मुंम्बइ अहमदाबाद सहित भारत के विभिन्न स्थानो मे
  • आकाशवाणी और दूरदर्शन

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