Wednesday, January 26, 2011

कन्या गुरुकुल विद्यालय, नरेला लड़कियों को ब्रह्मचर्य धारण की प्रेरणा देता विद्यालय



अंकुर शुक्ला
नई दिल्ली ,15 जनवरी। राजधानी दिल्ली में यूँ तो कई विद्यालय हैं जहां आधुनिक और विषयों से सम्बंधित शिक्षा दी जाती है । लेकिन दिल्ली के नरेला इलाके में स्थित कन्या गुरुकुल विद्यालय एकमात्र ऐसा विद्यालय है ,जहां संस्कृत की शिक्षा के साथ-साथ लड़कियों को ब्रह्मचर्य धारण करने की प्रेरणा भी दी जाती है । इस विद्यालय की स्थापना 1953 में नरेला के प्रकांड विद्वान स्वामी ओमानंद सरस्वती ने की थी । उन्होंने विद्यालय की स्थापना के लिए 62 एकड़ जमीन दान में दिया था ।

यहाँ संस्कृत में आचार्य ,शस्त्री,विशारद की उपाधि देकर अष्टाध्याय ,महाभाषी, वेद आदि की शिक्षा दी जाती है । पिछले 42 वर्षों के दौरान लगभग 15 हजार लड़कियों ने शिक्षा अर्जित की है । इनमे सैंकड़ो महिलायें विदेशी थी । इनमे से कई महिलाओं ने 'ब्रह्मचर्य पर्व' धारण कर आजन्म अविवाहित रहने का संकल्प किया है ।

हरियाणा के रोहतक स्थित महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त कन्या गुरुकुल विद्यालय में अभी करीब 500 लड़किया हैं. और 20 शिक्षिकाएं हैं । यहाँ शिक्षा लेने या अध्यापिका के रूप में नियुक्ति के लिए पहली अनिवार्य शर्त न केवल अविवाहित होना बल्कि आजन्म अविवाहित होना भी जरूरी है । यहाँ वैदिक रीति से प्राचीन काल के गुरुकुलों की तरह शिक्षा दी जाती है ।


विद्यालय के नियमों के अनुसार सभी छात्राओं को प्रात: 4 बजे जगाना होता है । पांच बजे तक तैयार होकर पूजा स्थल पर वीड पाठ करना अनिवार्य है । प्रात: छह से आठ के बीच व्यायाम ,अल्पहार,कृषि एवं श्रमदान किया जाता है । 10 बजे विद्यालय में पढाई होती है । अपराहन तीन बजे विद्यालय सत्र समाप्त होता है । तुरंत अल्पहार एवं विश्राम के बाद विद्यालय परिसर की गतिविधियाँ ख़त्म हो जाती है ।

अपनी कुशलता के लिए यह गुरुकुल अन्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्द है । नेपाल,मारीशस आदि देशों से प्राय: छात्राएं यहाँ शिक्षा लेने आया करती है । इसके अलावा दक्षिण भारत से भी यहाँ छात्राएं पढऩे आती हैं । लड़कियों के लिए यहाँ भोजन,वस्त्र आदि सभी सुविधाएं नि:शुल्क प्रदान की जाती है । .गुरुकुल की 50 एकड़ जमीन में खेती होती है और जनसहयोग से ही इसका संचालन होता है । गुरुकुल की अपनी गौशाला भी है,जिसमे करीब 80 गायें हैं ।

एक विदेशी छात्रा ने बताया की शांत ,सौम्य और पुर्णत: भारतीय माहौल के अनुकूल यह गुरुकुल एक विलक्षण संस्थान है ,जहां शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ भारत के सांस्कृतिक और पौराणिक दर्शन को जानने का मौका मिलाता है । एक सवाल के ज़बाव में सुनीता ने कहा कि ऐसा नहीं है कि संस्कृत की शिक्षा से रोजग़ार नहीं मिल सकता,यहाँ की शिक्षा से तो समाज,इतिहास और भारत के प्रति नै दृष्टि मिली है ,जो मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है । नेपाल की तुलसी का स्पष्ट मानना है कि संस्कृत का भविष्य उज्जवल है और मै संस्कृत की प्रकांड विद्वान बनने की ललक से यहाँ पढ़ रही हूँ । अविवाहित रहने के बावत विदेशी लड़कियों का कहना है कि यहाँ की ऐसी दिनचर्या है,जिससे हमलोगों को समाज के लिए कुछ नया करने की प्रेरणा मिली है ।

अधिकाँश शिक्षिकाएं भी अविवाहित रहकर यहाँ के माहौल से तृप्त हैं । इनके अनुसार यह सभी अविवाहित रहकर केवल नौकरी नहीं कर रही है बल्कि अपनी पौराणिक संस्कृति की रक्षा कर रही हैं । यह कर्तव्य से बढक़र नैतिक धर्म है जिसके लिए संसारिकता के मोहपाश से अलग रहना त्याग नहीं स्वेक्छा है । यहाँ की अधिकाँश लड़कियों ने भी उम्र भर अविवाहित रहने का संकल्प लिया है ।

दरअसल यह गुरुकुल एक संस्था न होकर पौराणिक भारतीय संस्कृति और परम्पराओं की रक्षा करने वाली तपोभूमि है । एक तरफ नरेला में कन्याओं की तपस्या हो रही है वही दूसरी ओर हरियाणा के झज्जर में युवाओं को भी शिक्षित किया जा रहा है । स्थानीय लोगों का यह मानना है कि इस गुरुकुल में कन्याओं को समाज की मुख्य धारा से अलग नहीं किया जा रहा है बल्कि मुख्य धारा में रखते हुए उन्हें विलक्षण बनाने का प्रयास किया जा रहा है ।

देश भर में आयोजित होने वाले संस्कृत के तकरीबन सभी प्रतियोगिताओं में अब-तक सभी पुरस्कार यहाँ पढऩे वाली लड़कियों ने ही जीता है । संस्कृत अकादमी द्वारा विशिष्ट तौर पर पुरस्कृत यह गुरुकुल भले ही आज के आधुनिक समाज में सर्वमान्य न हो ,मगर पौराणिक संस्कृति ,परंपरा और भाषाओं की जननी संस्कृत की सेवा करने वाले कन्या गुरुकुल के महत्वा को नकारा नहीं जा सकता है ।

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