Wednesday, January 26, 2011

संसद में पेश होने वाले आम बजट को लेकर कवायद शुरू


· सरकार और जनता दोनों के लिए ख़ास होगा बजट 2011-12

· सरकार के लिए इस बार का आम बजट तैयार करना काफी चुनौती भरा काम

नई दिल्ली, अंकुर शुक्ला

र बार की तरह इस बार भी संसद में पेश होने वाले आम बजट को लेकर कवायद शुरू हो चुकी है । ऐसा माना जा रहा है कि इस बार का बजट सरकार और जनता दोनों के लिए ख़ास होगा । दरअसल सरकार के लिए इस बार का आम बजट तैयार करना काफी चुनौती भरा है । एक तरफ महंगाई डायन बन कर लोगों की जेब पर भारी पड़ रही है । दूसरी ओर आम लोगों की उम्मीदें हैं और साथ ही सरकारी खजाने का भी ख्याल रखना है। सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से दबाव में है । वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी आर्थिक मामलों के भी वे अच्छे जानकार माने जाते हैं । चूकि उन्होंने कई मौकों पर यु.पी.ए सरकार का बेडा पार लगाया है और सरकार के लिए कई मौकों पर संकटमोचक भी साबित हुए है । इसलिए.उन्हे साल 2010 के सबसे बेहतर एशियाई वित्तमंत्री के अवार्ड से भी नवाजा गया। इससे पहले भी 1984 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान उन्हें उस साल का दुनिया का सर्वश्रेष्ठ वित्तमंत्री चुना गया था।

बेहद ख़ास कैसे है यह बजट?

दरअसल प्रणव मुखर्जी के सामने ज्यादा मुश्किलें मुह बाए खड़ी है । देश की जनता करीब डेढ़ सालों से महंगाई की मार से बेहद परेशान है और इससे निजात दिलाने के लिए कोई ठोस सरकारी कदम के तौर पर अबतक कुछ भी सामने नहीं आया है । बीते 25 दिसंबर को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई का ग्राफ भी 18 फीसदी के आंकड़े को पार कर चुकी है । ऐसे में जनता की यह उम्मीद रहेगी कि कम से कम आम बजट में वित्त-मंत्री की तरफ से आम लोगों पर कोई नया बोझ नहीं डाला जाएगा। डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के मामले में भी सरकार के पास ज्यादा विकल्प नहीं है । इन करों की नई व्यवस्था में प्रस्तावित टैक्स दरों का ऐलान पहले ही नए डायरेक्ट टैक्स कोड में किया जा चुका है। साथ ही आयकर की सीमा को भी पहले ही बढ़ाकर 2 लाख रुपए तक किए जाने का प्रस्ताव निर्णय हो चुका है।

कैसे बढेगा जीडीपी अनुपात ?

देश जिन आर्थिक हालातों से गुजऱ रहा है उसे देखते हुए यह उम्मीद लगाईं जा रही है कि आम लोगों के लिए वित्तवर्ष 2011-12 का बजट राहत भरा ही होगा। जानकारों का तो यही मानना है कि सरकारी खजाने को भरने के लिए अगले वित्तवर्ष में अंतरराष्ट्रीय कराधान नियमों पर ध्यान देने की गुंजाइश ही बचती है। सरकार के सामने अपने टैक्स-जीडीपी अनुपात को बढ़ाने की भी बड़ी चुनौती है। ऐसे में ट्रांसफर प्राइसिंग और दोहरे कराधान निवारण नियमों में बदलाव किए जा सकते हैं। माना यह भी जा रहा है कि सरकार आयात ड्यूटी में फेरबदल कर सकती है।

वैसे चालू वित्तवर्ष के दौरान कर उगाही में हुए इजाफे और जीडीपी के अच्छे आंकड़ों की बदौलत इस मामले में सरकार के लिए राहत की खबर है। इसके साथ ही सरकार को उम्मीद थी कि 3जी स्पेक्ट्रम की निलामी और सरकारी कंपनियों के विनिवेश के जरिए भी इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। लेकिन सरकारी तेल कंपनियों के बढ़ते घाटे बीच यह फॉर्मूला कितना कारगर साबित हुआ यह भी सरकार को बताना होगा।

अब तक सरकारी कंपनियों के विनिवेश के जरिए 22,000 करोड़ रुपये की रकम जुटाई गई है जो की लक्ष्य से करीब करीब आधी ही है। यानी नए बजट की नई चुनौतियों के अलावा सरकार के पास अधूरे कामों को पूरा करने की भी चुनौती रहेगी।

जहां तक राजस्व में बढ़ोतरी का सवाल है, इस मोर्चे पर सरकार के हाथ बंधे हुए हैं। कारण यह है कि सरकार पहले से ही डीटीसी (डायरेक्ट टैक्स कोड) विधेयक में नए टैक्स स्लैबों की पेशकश कर चुकी है। फिलहाल यह विधेयक संसद की स्थायी समिति के विचाराधीन है। पिछले साल पेश किए गए इस विधेयक में 2-5 लाख रुपये की आय पर 10 फीसदी टैक्स, 5-10 लाख रुपये की आय पर 20 फीसदी टैक्स और 10 लाख रुपये से ज्यादा की आय पर 30 फीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव किया गया है। डीटीसी एक्ट के 1 अप्रैल 2012 से प्रभावी होने की संभावना है।

पिछले आम बजट के दौरान वित्तमंत्री ने यह कहा था कि सरकार का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2009-10 के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में 6.7 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 2010-11 में घटकर जीडीपी के 5.5 फीसदी के बराबर पहुंच जाएगा। इस मोर्च पर भी सरकार को लेखा जोखा पेश करना होगा। पिछले बजट के पक्ष में तर्क पेश करना भी वित्तमंभत्री के लिए एक और बड़ी चुनौती होगी

बहरहाल आने वाले कुछ हफ्ते प्रणब दा के साथ ही उनके विभाग के अधिकारियों के लिए भी काफी चुनौती भरे रहने वाले हैं। अब देखना होगा कि आम लोगों को राहत और सरकारी खजाने का खयाल रखने के बीच वित्तमंत्री कैसे तालमेल बैठाते हैं।

इन्फ्रास्ट्रक्चर पर रहेगी नजऱ

इसबार बजट में सरकार की नजऱ खासकर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर होगी.... बजट पेश करने के दौरान सरकार देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र को गति प्रदान करने के लिए बांड भी जारी करने के मूड में है...देश में बढाती हुई महंगाई के बीच सरकार की नजऱ लोगों की बचत पर है जिसका इस्तेमाल वह बेहद कुशलता से करना चाहती है....यह बेहद अच्छी तरह समझा जा सकता है कि इस क्षेत्र के अंतर्गत लगाने वाले टैक्स में छूट देकर सरकार पूंजी आकर्षित करना चाहती है।

रिजर्व बैंक के अधिकारी इस बात को लेकर अभी से ठोस रणनीति बनाने में जुट गए है ताकी कोई आकर्षक उपाए निकाला जा सके जिससे लोग टैक्स बचत के नाम पर पैसे वहां लगाएं। योजना आयोग ने अफसरों की इस समिति को कहा है कि वह इस दिशा में अपने प्रयास तेज करे। समिति की रिपोर्ट प्रधान मंत्री और वित्त मंत्री के पास जाएगी और फिर यह बजट का हिस्सा बनेगी। समिति चाहती है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर में पैसे लगाने वालों को उसी तरह की छूट मिले जैसी विदेशों में मिलती है।

सरकार इस पक्ष में है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए आवश्यक धन देश से ही जुटाया जाए। विदेशों से फाइनेंस के वह पक्ष में नहीं है। अगले पांच सालों में सरकार को भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं के लिए कम से कम 45 लाख करोड़ रुपए की जरूरत है जिसका बड़ा हिस्सा देश से आ सकता है और सरकार इसी योजना पर काम कर रही है।

किस तरह से इन बांडों में पैसा लगाने वालों को छूट देते हुए टैक्स वसूली के टारगेट को बरकरार रखा जाए समिति इस बात पर भी विचार कर रही है।टैक्स में ज्यादा छूट देने से यह उद्देश्य धरा रह जाएगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर समय की जरूरत है और सरकार इस पर पूरा ज़ोर देगी।

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