Monday, February 8, 2010

ज़िम्मेदार कौन??

‘अक्सर’ आप लोगो को यह कह्ते हुये सुनते होगे कि “ भारत का कुछ भी नही हो सकता”….., “इंडिया में ऐसा ही होता है”…….., “इस सरकार ने कुछ भी नही किया”……, वगैरह!! वगैरह!!
लेकिन,सरकार भी जनता यानि, हम और आप मिलकर चुनते हैं, भारत भी हमारा ही देश है, और इस देश की विकास और प्रगति हमारे और आपकी जागरूकता पर निर्भर है. कहने का तात्पर्य यह है की यहाँ लोकतंत्र है और जनता ही यहाँ जनार्दन अर्थात सर्वोपरी है, फिर इतनी निराशा और ऐसी बातों से भला क्या लाभ हो सकता है? ऐसी बाते तो हम लगभग पिछले ४० वर्षों से करते आ रहे है लेकिन निष्कर्ष क्या निकला?? कुछ भी नही……!! नहि!! सरकार जगी और नहि!! लोग. फिर वही निराशा वही सवाल!! जिसका ज़वाब हम और आप तब-तक नही ढूंढ पायेंगे जब-तक ये तमाम सवाल हम खुद से नही पूछते!! ना तो इन सवालों को हम खुद से पूछते है, और नहि!! इसका उत्तर हमें मिलता है.
किस सोच में डूब गए ज़नाब??‘प्राथमिक अध्यन’ करते हुए आपने अपने ‘सामाजिक अध्यन’ नामक विषय में हमारे अधिकारों एवं कर्तव्यों के बारे में अवश्य पढ़ा होगा? आपके सभी प्रश्नों का उत्तर आपको वही से मिलेगा.मगर, सवाल यह उठता है कि, हमारे देश में कितने लोग पढ़े-लिखे हैं?? मेरा मतल॑ब॑ उनसे है जो वास्तव में अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझते हैं! वो नही, जो पढ़-लिख कर भी मूर्खों कि तरह पेश आते है.
वास्तव में, हम अपने अधिकारों के प्रति तो जागरूक हैं मगर अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन या यु कहे तो गलत नही होगा कि, हम ‘पूर्ण रूप से स्वार्थी’ और संवेदनहीन हो चुके हैं.
लोकतंत्र में अगर जनता ऐसा वेवहार करती है तो उसके द्वारा निर्वाचित सरकार का अकर्मण्य और संवेदनहीन हो जाना कोई आश्चर्य कि बात नही है. जिस देश में चुनाव के दौरान केवल ४० से ५५ प्रतिशत मतदान होता हो,वहां कि जनता का ऐसा कहना या फिर दोषारोपण करना उचित नही है. अब आप अपने पालतू कुत्ते को उदाह्रंस्वरूप देखिये, अगर वह भागने कि कोशिश करता है तो आप उसकी पट्टी खीच कर उसे भागने से रोकते हैं. अगर आप पट्टी को नही खीचेंगे तो क्या होगा?? वह आपकी मालकियत से आज़ाद हो जाएगा. तो, जरा सोचिये! अगर आप लापरवाह हो जायेंगे तो शासन-तंत्र का लापरवाह होना स्वाभाविक है.
अगर आप दिल्ली मेट्रो से सफर करते होंगे तो आपको यह पता होगा कि मेट्रो कि कुछ चुने हुए स्टेशनों पर मोबाइल कि बैटरी चार्ज करने के लिए ‘चार्जिंग पॉइंट्स’ बनाये गए हैं. आपलोगों मे से कई लोगों ने उसका इस्तेमाल भी किया होगा . कुछ दिन पहले मै जब राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर उतरा तो अचानक मेरा मोबाइल बैटरी चार्ज ना होने की वजह से बंद हो गया. इस दौरान मै किसी से महत्वपूर्ण बात कर रहा था जो, अधूरा रह गया. लेकिन मेरा फोन से बात करना ज़रूरी था इसलिए, मैंने वहां ‘मोबाइल चार्जिंग पॉइंट’ ढूँढने की कोशिश की, आश्चर्य॑ की बात यह है कि वहां कोई भी चार्जिंग पॉइंट उपलब्ध नही था. वहां एम्.टी.एन.एल. एवं रिलाएंस कि जितनी भी पी.सी.ओ. थी सभी खराब थी. जब मैंने इसके बारे में वहाँ के आधिकारियों से पूछा तो उनके उत्तर को सुन कर आप भी हैरत में पर जायेंगे उन्होंने खा कि ” कुछ दिनों पहले तक चार्जिंग पॉइंट था मगर,कोई उसे चुराकर ले गया”सवाल यह है कि जब मेट्रो स्टेशन पर चार्जिंग पॉइंट्स चोरी हो सकती है? तो क्या पूरा मेट्रो स्टेशन सुरक्छित है? अगर केन्द्रीय औद्योगिक बल एवं तमाम सिक्योरिटी एजेंसियों के होते हुए अगर यह संभव है तो यह कहना गलत नही होगा कि ‘मेट्रो’ भगवान् भरोसे चल रही है. यह एक गंभीर प्रश्न है!! लेकिन किसे मतलब है मोबाइल चार्जिंग पॉइंट से जब ज़रुरत पड़ेगी तब देखेंगे? यह सोचकर ना तो किसी ने इसके बारे में पुछा और ना ही सम्बंधित अधिकारियों पर कोई असर हुआ!मेरी नज़र में जनता कि लापरवाही से तंत्रीय अकर्मण्यता का इससे जीता-जागता उदाहरण और क्या हो सकता है??
वक़्त आ गया है कि हम इन विषयों पर गंभीरतापूर्वक विचार करें!! नही तो आप शिकायत करते रह जायेंगे,भारत वही का वही रह जायेगा, और कुछ बदले ना बदले हाँ! आपका भविष्य यानि, आपकी संतान कभी विकसित भारत नही देख पायेगी और इसके एकमात्र जिम्मेदार हम और आप होंगे.
“मैंने तो फिर भी कुछ खोया, तुमने क्या पाया यह समझो”॑॑
आपका,
”अंकुर”

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